हे राम आसाराम : दैनिक नेशनल दुनिया स्‍तंभ 'चिकोटी' में 11 जनवरी 2013 को प्रकाशित





हजारी लाल ने आज अपनी दुकान बंद कर रखी है। बाहर एक टैन्‍ट लगा हुआ है और नीचे बिछे गद्दों पर आठ दस लोग मुंह लटकाए बैठे हैं।मैं किसी अनहोनी की आशंका से स्‍तब्‍ध हूं। क्‍या हुआ हजारीलाल मैं पूरी तरह गंभीरता ओढ़कर पूछता हूं। मुन्‍नाभाई आज मुझे पहली बार अपने हज्‍जाम होने पर दुख हो रहा हैकि क्‍यों मैंने नाई की दुकान खोलीजबकि देश में रोजगार के इतने अधिक अवसर मौजूद हैं। पढ़ा  लिखा हूं इसलिए ही तो बाल काट रहा हूंउस घड़ी को कोस रहा हूं जिस दिन मैंने हज्‍जाम बनने का फैसला लिया था मुन्‍नाभाई।
बतलाओ तो हो सकता है कि मैं तुम्‍हारी कुछ मदद कर सकूं,मैंने इंसान बनते हुए कहा। आप कुछ नहीं कर पाओगे मुन्‍नाभाई। मैं सचमुच की कैंची से पब्लिक के बाल कतरता हूँ और वो अपनी जुबान की कैंची से दिमाग को कुतर रहा है। उसने अपने धंधे में पूंजी भी नहीं लगाई और करोड़पति बन बैठा । अब हाल यह है कि करोड़पति और नेता तक उसके दरबार में हाजि‍री बजाने के लिए लालायित रहते हैं और मौका मिल जाए तो धन्‍य हो जाते हैं। 
मैं तुम्‍हारे दुख का सिर-पैर नहीं समझ पा रहा हूँ हजारीलाल। उसने कहा, एक हो तो गिनवाऊं मुन्‍नाभाई और हजारीलाल फूट फूट कर रोने लगा। मुझे लगा जरूर इसके किसी नजदीकी सगे-संबंधी की मौत हो गई है तभी यह बहकी-बहकी बातें करके विलाप कर रहा है।
दरअसल, बात यह है कि बाबा बनकर नामदाम कमाने और इसे रोजगार बनाने का धंधा आजकल बहुत उपजाऊ है। यहां पब्लिसिटी भी खूब मिलती है,भीड़ बिना बटोरे सामने निकम्‍मे घुग्‍गू की तरह बैठी रहती है और जिस चीज को हाथ लगा दोवह हाथों हाथ खूब बिक जाती है। आलम यह है कि वह मिट्टी को हाथ लगा दे तो अंधभक्‍तगण मुट्टी भर-भर मिट्टी खरीद कर ले जाते हैं। किसी पॉर्न पत्रिका की प्रचार-प्रसार संख्‍या भी इसकी पत्रिका के आगे पानी नहीं भर पाती है। 
यह अपनी पर आ जाएं तो ‘राम नाम’ की मदिरा बनवाकर मदिरा बेचने के सारे रिकार्ड ध्‍वस्‍त कर दें और एक पैसे का टैक्‍स भी न चुकाएं। मछलियों के किंग’ को किसी ने बुद्धि नहीं दी होगीअगर उन्‍होंने सरकार की जगह इनकी शरण ली होती तो अब तक वारे-न्‍यारे हो गए होते। जहाज उड़ाकर कमाने की तो बात छोड़िएवह अगर इनसे केवल दीक्षा ले लेता तो आज रंगीन कलेंडर छाप रहा होता !  

हजारीलाल बतलाए जा रहा था कि जितने भी बाबा हैंसभी एक ही थैली के चटावन लाल हैं। वे चाहे आसाराम होंनिर्मल बाबा हों या किसी मंदिर के पुजारी बाबा। सबकी मुंडियां और मुट्ठियां नोटों की कड़ाही में डूबी रहती हैं। इनके लुभावने नाम इनकी ओर सहज ही आकर्षण पैदा करते हैं। धर्म को धंधा बनाने के लिए इनका किया गया योगदान अतुलनीय है मुन्‍नाभाई। अब मुझे हजारीलाल का दुख समझ में आने लगा। मैंने कहा, तुम बिल्‍कुल ठीक कह रहे हो। अगर ईश्‍वर पृथ्‍वी पर होता तो इनकी कारगुजारियां देखकर जरूर विस्मित हो रहा होता और उसे अपने ईश्‍वर होने पर पछतावा होता। ईश्‍वर को भी महसूस हो जाता कि भगवान बनने से अधिक अच्‍छा धंधा तो बाबा बनने में है। महात्‍मा गांधी यानी बापू ने जितना नाम और ख्‍याति अपने जीवन भर में नहीं कमाई, उससे अधिक तो तथाकथित बाबा आज पल भर में बटोर लेते हैं,चाहे इसके लिए इन्‍हें बकवास ही क्‍यों न करनी पड़े। जिन महिलाओं को यह इज्‍जत देने का दावा करते हैंऔर जिनके जुड़ने से इनका धंधा जमा है,उन्‍हीं को मौका पड़ने परबाजारू’ कहने से नहीं चूकते हैं। मतलब तो सुर्खियां बटोरने से हैइन्‍हें सुर्खीखोर’ कहा जा सकता है।

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