पिछले हफ्ते दोपहर जब मैं हजारीलाल के पास हजामत बनवाने पहुंचा तो लग रहा था मानो सर्दी ने भी दुष्कर्म पीड़िता के मामले पर रौद्र रूप में उपस्थित होकर विरोध दर्ज करा दिया है। दुकान में घुसते ही ठिठकना पड़ा क्योंकि हजारीलाल बुक्का फाड़कर हंसने लगा। उसकी इस हरकत से दुकान में मौजूद लोग फैसला नहीं ले पा रहे थे कि वे मुझे देखें या हजारीलाल के हंसने को। मुझे अपने पर शक हुआ पर मैंने अपना वेश विन्यास चुस्त-दुरुस्त पाया और आखिरी तसल्ली मूंछों पर हाथ फेरकर कर ली तो जान में जान आई। हजारीलाल बोला, मुन्नाभाई, आपने भी अखबार की हैडलाइनें पढ़ी होंगी कि 'महिलाओं को सुरक्षा दे सरकारें'। फिर उस पर त्वरित टिप्पणी भी कर डाली कि सरकारें खुद सुरक्षित नहीं हैं और बीते दिनों उन्होंने महिलाओं पर पुलिस से डंडा चलवाकर अपनी सुरक्षा मजबूत करने की कोशिश की है। मैंने हजारी लाल को चेताया कि जानते नहीं कि यह नोटिस सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया है और केन्द्र और राज्य सरकारों से इस बारे में चार सप्ताह में जवाब मांगा है और तुम हंसकर कोर्ट की तौहीन कर रहे हो। हजारीलाल ने कहा कि मेरी क्या मजाल कि मैं सुप्रीम कोर्ट की शान में गुस्ताखी करूं। मैं तो सरकारों के बेहूदा चाल-चलन के बारे में बता रहा हूं क्योंकि उसे चलाने वाले दुष्कर्मी हैं। जो आधार कार्ड के बहाने गरीबों के खातों में सब्सिडी के नाम पर नकद ताकत जमा कर रहे हैं। मेरे खाते में भी 600 रुपए जमा मिले हैं ताकि सीधे अपने परिवार के पांच वोट उनके पक्ष में समर्पित कर दूं और उनकी सरकार की सुरक्षा सुनिश्चित हो जाए। जो खुद कुकर्मी हैं, वे महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी क्या देंगे! हजारीलाल की बात में दम है क्योंकि हज्जाम वह शौकिया नहीं, नौकरी न मिलने की मजबूरी से बना है। और इससे इस बात की भी पुष्टि होती है कि उसे अपनी और अपने परिवार के सभी सदस्यों की दाल- रोटी की चिंता है। वह सिर्फ अपने शौक पूरे करके अपने बच्चों को भूखा मारने के पक्ष में नहीं है। वह पॉलिटिकल साइंस में ऑनर्स है। उसने यह भी बताया कि यह संज्ञान सुप्रीम कोर्ट ने एक वकील की याचिका पर सुनवाई के अनुरोध पर मंजूरी देते हुए लिया है, इसलिए इसमें सुप्रीम कोर्ट की अवमानना वाला मामला नहीं बनता है। फिर दिल्ली की सीएम इस मुद्दे पर' ˜पैदल मार्च' कर रही हैं जबकि काफी कड़े फैसले वे स्वयं लेने और लागू करवाने में सक्षम हैं। आप तो जानते ही हैं मुन्नाभाई, यह मौसम वोटों की खेती के लिए कितना अनुकूल है। इस समय भरपूर फसल काटी जा सकती है। मानवाधिकार आयोग की नींद भी महिलाओं के सुरक्षा मसले पर उचट गई है परन्तु क्या गारंटी है कि वह दोबारा गहरी नींद में नहीं सो जाएगा। मैं हजारीलाल के तर्क के आगे बेबस था। ' ˜बस'' में सफर करने में वैसे भी खतरे बढ़ चुके हैं।
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सुरक्षा की गारंटी : दैनिक राष्ट्रीय सहारा 15 जनवरी 2013 स्तंभ 'चलते चलते' में प्रकाशित
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achchha hai...visheshkar shilp me sudhar hai..badhai
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुभाष जी।
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