जब घड़ी खराब हो तो कोई घड़ी घड़े को फूटने से नहीं रोक सकती है। घड़ा कुंभ ही है, घड़ा फूटता है, कुंभ लूटता है। जब कुंभ में पापों की संख्या गले तक भर जाती है तब कुंभ को भी फूटने से कोई नहीं बचा सकता है। शरीर में प्राण कुंभ ही हैं। कुंभ को शरीर मान लो चाहे प्राण। कुंभ में नहाकर कब तक जीवन को बचा सकते हो या पुण्य लाभ हासिल कर सकते हो। कितना ही नहान कर लो, महान कारज कर लो, जब फूटना है तो जरूर फूटेगा। जीवन तभी शरीर से छूटेगा। शरीर से जीव का छूटना भी जीवन है। जीवन की व्याख्या कुछ यूं की जाए, जीव वन में समाया – इसे पार लगाओ।
वन एक मन है। वन एकमना है। वन का होना बिल्कुल नहीं मना है। वन का होना पर्यावरण के संतुलन के जरूरी है। मन चारों ओर से घिरा होने पर बनता वन है। वन जो अंग्रेजी का एक है, वह पूरे जंगल की प्रकृति को सामूहिकता की पहचान देता है। जीव एक है,मन एक है। जीव तभी तक जीव है जब तक उसमें मन है और मन भी तभी तक मन है जब तक उसमें जीव है। अंग्रेजी का वन होने से मन की विजय का भाव तो जगता है पर यह जरूरी नहीं है। मन को जीतने के लिए उपक्रम सब करते हैं परंतु कुछ मन को जीतने के मुगालते में जीते रहते हैं। कुछ यह विचार करते रहते हैं कि वे मन को जीत चुके हैं जबकि मन को जीतना इतना सरल नहीं है। जीतने वाले तो यूं ही मन को जीत लिया करते हैं। जिसने मन को जीत लिया, समझ लीजिए उसने समस्त चराचर पर विजय पा ली। जीव यानी मन का पंछी जब प्राण पखेरू को छोड़ कर उड़ जाता है, तब कुंभ यहीं रह जाता है। न कुंभ साथ जाता है, न कुंभ जाने वाले को रोकता है, न रोक ही सकता है। कितना ही महान नहान कर लो, कुछ तो नहान करते करते महान हो जाया करते हैं। महान होने की यह प्रक्रिया किसी के लिए दुखद होती है और बाकी के लिए सुखद। दुख और सुख का भेद मिट जाए तो समझ लीजिए आपका कुंभीकरण हो गया। कुंभीकरण के मौके कम होते हैं और कुंभीकरण के लालची बहुमत में होते हैं। सोचते हैं कि अब तक के सब पाप कटे, जितने पुण्य वहां बटे, सबके सब हम समेट लाए हैं। पाप मेट कर पुण्य समेट कर लाना होगा ’जव वी मेट’ नहीं है और है भी। इस सत्य से भला किसे इंकार होगा।
कुंभ नहान की महिमा बड़े बड़े नामी नामी बाबाओं को साधुओं को कुंभ का स्वाद सार्वजनिक तौर पर लेने को मजबूर कर देती हे। बाबा भी शारीरिक तौर पर एक दूसरे के गले पकड़ने को जुट जाते हैं। कुंभ नहाना एक दंभ बन जाता है। नहाना है तो कुंभ नहाना है। जबकि यह तथाकथित बाबा स्वीकारते हैं कि उन्होंने कभी कोई पाप नहीं किया है फिर भी कुंभ नहाने का लालच नहीं त्याग पाते हैं। अपनी बात को खुद ही झुठलाते हैं। इसी से बाबाओं की असलियत खुलती हैं, कुछ बयान फेंककर विवादास्पद हो जाते हैं कुछ बे-बयानी में। पब्लिक और श्रद्धालुओं के हिस्से में जो लिखा है, वह इन बाबाओं ने ही लिखा है, सब यही समझते हैं जबकि सच क्या है, आप नहीं समझते हैं ?
सच क्या है, श्रीमान?
जवाब देंहटाएंसंवादस्थली है कुंभ, १२ वर्षों के संचित संवादों की।
जवाब देंहटाएं