आज़ादी पर सेंसर ! : दैनिक ट्रिब्‍यून 12 अगस्‍त 2012 में 'खरी-खरी' स्‍तंभ में प्रकाशित


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आजादी कहकर आजा दी को नहीं बुला रहे है। दीदी गर ममता है तो वे स्‍वतंत्रता पर अंकुश हैं। माया है तो मूर्तियां हैं। माया ने मूर्तियां बनाने की स्‍वतंत्रता का सुख लिया। वैसे मूर्तियां बनाकर वे मूर्तियों के पराधीन हो गईं और कहा गया है कि पराधीन सपने हूं सुख नाहीं। दीदी ने कार्टूनों के सुख से भी दूर कर दिया। किताबों से कार्टूनों को बाहर कर दिया गया और कोई रास्‍ता भी नहीं दिखाया गया। वैसे जब किसी को बाहर किया जाता है तो कहा जाता है कि इसे बाहर का रास्‍ता दिखाओ। ऐसे लगता है मानो दी की इस कार्रवाई से समस्‍त कार्टूनकार अंधे रास्‍ते पर धकेल दिए गए हैं। जबकि रास्‍ते अंधे नहीं होतेधकेलने वाले जरूर अंधे होते हैं। रास्‍तों को देखने की जरूरत नहीं होती कि उन पर कौन चल रहा है और किसे धकेला जा रहा है। रास्‍तों की आंखें भी नहीं होती हैं। वरना चलने वालों को बहुत दिक्‍कत हो सकती थी। उनके ऊपर से गुजरने वालों को नीचे से देखना ... काफी रिस्‍की हो जाता हैखासकर महिलाओं कोअब इसके विस्‍तार में न ही जाया जाए तो बेहतर है।
अंधे को आजादी मिलेन मिले। एक ही बात है उसकी आजादी पर अंकुश ईश्‍वर ने कस दिया है। आंखों में रोशनी न देकरया देने के बाद भी छीन कर। आजादी आंख कीकान से सुनने की आजादीनाक से सूंघने की,सांस लेने कीमुंह से बोलने की – सब कुछ प्रकृति प्रदत्‍त हैं। इसलिए नाक का रुतबा सदा कायम रखने की कोशिशें जारी रहती हैं। वैसे भी नाक को मूंछ के जरिए अंडरलाईन ईश्‍वर ने ही किया है। महिलाओं की नाक को नहींफिर भी जो नाक की साख कायम रखने में खुद को सक्षम नहीं पाते हैंवे मूंछों रूपी अंडरलाईन को डिलीट कर देते हैं।
नाक पर न सेंसर लगा है और न लग ही सकता है। इसमें स्‍वच्‍छ सांस लेने के लिए भी फिल्‍टर की कोई व्‍यवस्‍था नहीं है। सब धड़ के भीतर लगी हुई मशीनों में धड़धड़ाता रहता है। सरकार चाहे तो इस पर टैक्‍स लगा सकती है परंतु रोक नहीं। आजादी के ईश्‍वरप्रदत्‍त प्रवाह को इंसान रोकने में सरकार सक्षम नहीं है। मुझे लग रहा है कि अब अगर ईश्‍वर भी चाह रहा होगा तो रोक नहीं पा रहा होगा। इंसानप्रदत्‍त आजादी पर अराजकता के बरक्‍स सेंसरअंकुश सब लगाया जा सकता हैलगाया जाता है। चाबुक भी चलाई जाती है। सजा देना चाबुक चलाना ही है। लगाम कसना गला घोंटना है।
आजादी के दुश्‍मन अनेकआजादी एक। गला घोंट दो,लगाम कस दोचाबुक चला दो – आजादी मत रहने दो। आजादी का सुख लेने की आजादी छीनना ही सरकारों का अभिप्राय रहता है। बादलों ने इस मानसून के मौसम में आजादी का बेपनाह लुत्‍फ उठाया कि इंसान को नानी नहींसूखा याद आ गया। वे सरकारी सब्सिडी के सपने देखने लगे। किंतु रायता बनाने के लिए कहीं की सरकार सब्सिडी नहीं देती है क्‍योंकि रायता बनाने के लिए दूध का दही बनाना और दही से रायता बनाना और उस पर सबको यह भ्रम है कि वे किसी के भी रायते को फैला दें। रायता फैलाना जुल्‍म ही हैजुर्म भी है। आप सरकार का रायता फैलाने की कोशिश करके ही देखिएगाफैलाना तो दूर का मंगल’ है लेकिन फिर आप सरकारी जंगल में ऐसे घूमेंगे कि ताउम्र भटकते और अटकते ही रहेंगे। कितनी मेहनत से दही तैयार करके सरकार घोटालों-घपलों रूपी दही का रायता बनाती हैं और उसे कोई यूं ही आजादी’ के नाम पर लुढ़का जाए। लुढ़काने वाले की तो शामत आएगी हीउस लोटे का भी रिमांड लिया जाएगा कि तू लुढ़का क्‍यों’ मतलब लोटे को लुढ़कने की भी आजादी नहीं है। जबकि नेता यूं ही नोटों के लिए जीवन भर लुढ़कते-लुढ़काते रहते हैं।
फेसबुक की आजादी का मजा सब लूट रहे हैं। जिसमें न फेस अपना है और बुक। फिर भी धड़ल्‍ले से कहा जाता है फेसबुक। बड़ेबूढ़ेबच्‍चेजवान मन भर भर कर टनों के तोल से आजादी लूट रहे हैं। इस लूट को रोकने के लिए न कोई पुलिस हैकोई खाप पंचायत भी इसमें दखल नहीं रखती है। इस लूट रूपी छूट को रोकने की प्रक्रिया तब तक कारगर नहीं हो सकती जब तक इंटरनेट पर खाता खोलने के लिए किसी सरकारी पहचान पत्र की अनिवार्यता नहीं की जाती। बगैर इसके इस सोशल मीडिया पर जो निरंकुशता का मानसून दिखाई दे रहा हैबरस रहा हैसब लुत्‍फ ले रहे हैंमहसूस हो रहा है – विकासमान ही होगा। इस दही का रायता मत बनाओन बनने दो पर इतना तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इस रायते को फेलने से कोई रोक नहीं पाएगा।
इस रायते को लुढ़काने भी नेता ही आएगा और लुढ़कने की जांच के लिए नेता को ही जांच अधिकारी बनाया जाएगा। लोटानेता और रायता क्‍यों लुढ़कते हैं’, इस पर यदि कोई विश्‍वविद्यालय राज़ी हो जाए तो सोच रहा हूं कि पीएचडी कर लूं। लेकिन इतने गूढ़ विषय पर शोध करने के लिए विश्‍वविदयालय अनुदान आयोग’ से भी सहायता की दरकार रहेगी। आप किसी विश्‍वविद्यालय की जानकारी देकर आजादी के रायते को फैलानेअरे नहींसमेटने में मददगार बनेंगे कि नहीं ?

1 टिप्पणी:

  1. ‘विश्‍वविदयालय अनुदान आयोग’ को ‘लोटा, नेता और रायता क्‍यों लुढ़कते हैं’ पर शोध परियोजना बना के भेजिये । जरूर कुछ लोटे में डालेंगे वो लोग । पर लोटा लुढ़कता रहना चाहिये !

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