हम भारतवासियों को तिरंगा फहराने की आजादी मिल गई है लेकिन उतने से संतोष नहीं है। इसलिए प्रत्येक क्षेत्र में आज देश भर में सब बड़े बड़े लोग रायता फैलाने में जुट गए हैं। एक साल से अधिक हो गया है अन्ना को जंतर पर मंतर मारते हुए लेकिन वे ‘लोकपाल’ का रायता फैलाने से सरकार को नहीं रोक पा रहे हैं। जबकि सरकार उनका रायता पूरी तरह फैला चुकी है। उधर बाबाराम (रामदेव) यह समझाने-बतलाने में जुटे हुए हैं कि उनका रायता अलग वैरायटी का है, पब्लिक के लिए हितकर है, गुणकारी है लेकिन सरकार उसे भी फैलाने से बाज नहीं आ रही है। लग रहा है कि सरकार का भी एक काम रायता फैलाने का रह गया है। जबकि रायतानिर्माताओं और धारकों ने अपने बरतनों, लोटों में मजबूत पेंदों की व्यवस्था कर ली है। फिर भी ताकतवर सरकार उनके रायते को लुढ़काने में हर बार कामयाब हो जाती है। सब जानते हैं कि रायता पेट के लिए हितकर होता है। इसका मूल स्वरूप दही और दही का मूल रूप दूध है। इन सबका रंग सफेद है तो अपनी मरजी से सरकार चलाने वाले ‘सफेदपोश’ भला किसी के रायते को सुरक्षित कैसे रहने देंगे, इसलिए यह कहकर लुढ़का देते हैं कि जिस दूध का रायता बनाया जा रहा है, वह मिलावटी है, सर्फ और रिफाइंड से बनाया गया है।
क्रिकेट जैसे महाखेल में जब से फिक्सिंग का रायता फैलना शुरू हुआ तब खूब हो-हल्ला मचा लेकिन रायता फैलाने का यह काम सिर्फ देश में ही नहीं होता है। यह कार्य खिलाड़ी ओलंपिक जैसे आयोजनों के नाम पर विदेशों में जाकर खेलों में शामिल होकर और ओलंपिक न जीतकर देश के रायते को विदेशों में फैलाने का मोह भी नहीं छोड़ पा रहे हैं तथा हारने के बाद भी हार पहनकर खुशी-खुशी आजादी का जश्न मना रहे हैं। देश में नेता इस फील्ड में न जाने कब से बाजी मार कर रिकार्ड बना रहे हैं। प्रत्येक कार्य में घपले-घोटाले करके नेता खूब खा-कमा रहे हैं। अभी हाल ही में नेताओं के रायता फैलाने की खबरें खूब प्रमुखता से सुर्खियों में हैं। जिसमें एक ओर फिजा ने चन्द्रमोहन ऊर्फ चांद मोहम्मद का रायता फैला दिया है, उधर गीतिका ने गोपाल कांडा का रायता इतनी बुरी तरह से फैलाया है कि गोपाल को गो गो गो करके फरार होना पड़ा है । जब अपनी जान और आन सांसत में हो तब आम आदमी तो सांस लेना भूल जाता है किंतु नेता तब भी दूसरों का सांस लेना दूभर करने में सफल हो जाते हैं। विदेशी बैंको में ‘काला धन’ जमा करके भी देश की आजादी का रायता न जाने कब से फैलाया जा रहा है। फैल फैल कर रायता काला हो गया है जिसे वापिस सफेद करने के लिए बाबा रामदेव प्रयासरत हैं।
सरकार का कहना है कि जब देशवासियों को कपालभाति, भ्रामरी इत्यादि प्राणायाम करने की आजादी मिली हुई है फिर बाबा रामदेव क्यों काले धन पर सरकार का रायता फैलाने का मोह नहीं तज पा रहे हैं। जब पतंग उड़ाने की आजादी मिली हुई है फिर क्यों सब लोग पतंग न उड़ाकर बाबा रामदेव के साथ काले धन का काला रायता फैलाने की मूर्खतापूर्ण हरकतों को अंजाम दे रहे हैं।
रायता फैलाने की आजादी से पहले रायता बनाने की आजादी पर विचार करना चाहिए लेकिन जरूरी नहीं कि दोनों आजादियां एक के पास ही हों। रायता कोई बनाए और उसे दूसरा फैलाए तो रायता फैलाने में, लाने से अधिक लुत्फ आता है। स्थिति यह है कि आजादी के 66वें बरस में आकर देश ने अपनी काबलियत में इजाफा करके ‘रायता’ फैलाने में विशेषज्ञता हासिल कर ली है। आप जान लीजिए कि जिस वस्तु की अधिकता होती है, वही बांटी या फैलाई जाती है। बचाने से अधिक फैलाने में मजा आता है। रायता फैलने से बचाने के लिए मेरीकॉम जैसी बॉक्सर के मुक्कों जैसी हिम्मत चाहिए, सो कोई तैयार नहीं है। चाहे पड़ा पड़ा खराब हो जाए, खराब होने के बाद फैलाने वाले का इंतजार करते रहते हैं। आप देख रहे हैं कि आज देश का रायता खराब हो चुका है लेकिन उसे फैलाने से बचाने का पब्लिक को मौका नहीं मिल रहा है। रायता फैलाने के लिए नेता खूब तल्लीन हैं। रायता फैलाने पर भी जिनका सम्मान किया जाता है, वे भी नेता ही होते हैं।
आजादी के इस 66वें पड़ाव पर विचार किया जाना चाहिए कि एकदम से रायता सुर्खियों में कैसे आ गया है। दरअसल, आज हर नकारात्मक चीज तुरंत सुर्खियों में आ जाती है, जैसे गालियां चर्चा में हैं, सेक्स की बात करके टीआरपी बढ़ाई जा रही है। कितनी ही देशभक्त कन्याएं खुद नंगी होकर देश को नंगा कर रही हैं। इसी प्रकार बात-बेबात में रायते का जिक्र करके, रायते को देश की समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराने का शुभ अवसर कोई नहीं चूकता है। हालत यह हो गई है कि ‘रायता’ सिर्फ ‘दही’ का ही नहीं बनता। किसी भी समस्या का रायता बनाकर फैला दिया जाता है। अपने सिवाय किसी का भी रायता हो, उसे ही फैलाने में आनंद की प्राप्ति होती है जिसे सब लूटना चाह रहे हैं।
यह कहना गलत नहीं है कि जो देश दूध दही की नदियों के लिए फेमस था, वह आज रायते के समन्दर के लिए प्रख्यात हो चुका है। जिधर देखो उधर रायता। मानो बरसात के पानी में सर्फ, सोडा, रिफाइंड तेल इत्यादि डालकर उसे दूध, मतलब मिलावटी दूध में तब्दील कर लिया गया हो, फिर उसका रायता बनाकर देश भर में फैला दिया हो। देश में आज रायते की नदियां उफान मार रही हैं और लोग उह ... लाला .... उह ... ला ... ला ... गा रहे हैं। जिन राज्यों में समन्दर हैं, वहां रायते अनाकरली के डिस्को में मगन हैं, चारों ओर रायता ही रायता है। हालत यह हो गई है कि नलों में से पानी की जगह रायता, पैट्रोल पंपों में पैट्रोल/डीजल/गैस की बजाय रायते की नदियां बह रही हैं। नलकों के लिए बाल्टियां, ड्रम, गिलास, कटोरी लगाकर भर तो रहे हैं परंतु उसे पीने के लिए नहीं, फैलाने के लिए उपयोग कर रहे हैं।
कोई भी अपना रायता खुद नहीं फैलाता है बल्कि उसे दूसरे को फैलाने का अवसर देकर पुण्य हासिल कर रहा है। अब यह दीपावली पर फोड़ने-जलाने वाली आतिशबाजी तो है नहीं कि जब तक खुद माचिस की तीली या मोमबत्ती की लौ में सुलगाएंगे नहीं, आनंद ही नहीं आएगा। दीवाली मनाने के लिए तीली के जरिए फुलझड़ी, बम, पटाखों का खुद सुलगाना ही आनंद देता है और उसका आनंद दूना तब हो जाता है जब आवाज पड़ोसी सुन रहे हैं और तिगुना मजा लेने के लिए आतिशबाजी को वर्जित समय में गाया-बजाया जाता है।
आजादी के इस अवसर पर पूरा राष्ट्र रायतामय हो गया है। सिर्फ कुछ जगहों पर अभी भी बरसात का बदबूदार पानी हिलोंरे ले रहा है। जैसे इंडिया गेट के पास बनाई गई नहरों में जो पानी की लहरें हैं, वे न जाने क्यों अभी तक ‘रायता’ क्यों नहीं बन पाई हैं। हो सकता है कि इनका ठेका दिया जाना हो और उन ठेकों से किसी मंत्री को ‘काला धन’ मिलने का मंतर मिलने वाला हो। लगे कीबोर्ड आपको रहस्य की बात बतलाता चलूं कि जिस रायते का यहां पर जिक्र किया जा रहा है, वह ‘सफेदपोश’ नहीं है बल्कि एकदम ‘स्याह काला’ है।
काले रायते का जिक्र सुनकर आप चौंकिएगा मत, जब देश मंत्रियों के व्यभिचार से नहीं चौंकता फिर आपका चौंकना कैसे जायज करार दिया जा सकता है। आजादी मनाइए परंतु चौंकने की आजादी बिल्कुल नहीं है आपको। हां, आप आजादी का रायता फैलाने के लिए बिल्कुल आजाद थे, आजाद हैं और सदा आजाद रहेंगे। आज यह महसूस हो रहा है कि ‘रायता फैलाना हमारी जन्मसिद्ध आज़ादी है’।
आपने भी अच्छा फैलाया है :)
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