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छतरी और छाता, एक ही है भाता। पुरुषों को भी बरसात में छतरी ही भाती है। गर्व से कहते हैं मेरे सिर छतरी है, छतरी में कन्या वाला भाव समाया है। जिसके साथ है, उसकी महफूजियत बनी रहती है। छाता आकार में बढ़ा होता है और सुरक्षा घनी देता है। धूप हो या बरसात, सबसे बचाता है। काम छतरी का भी यही परंतु छतरी पर पुरुष निगाहें इस कदर टहलती हैं, मानो रूपसी का दीदार कर रही हों। फोल्डिंग (अदाओं) में मिलती हैं, मनमोहक रंगों में फबती हैं छतरियां। धरा पर रंगीन छतरियों के दीदार कर इन्द्रदेव बरसते हैं। मुंबई में छतरियां सदैव तनी रहती हैं, सो इन्द्रदेव मेहरबान रहते हैं और बाढ़ आती है।
छतरी की डंडी मजबूती से थामना कला से कम नहीं। अनेक बार डंडी हाथ में रह जाती है। ‘छतरी जो उड़ गई तो ...’ अब उड़ गई तो दूसरी खरीद लायेंगे, उड़ने वाली छतरी को पकड़ने के लिए उड़नतश्तरी तो नहीं बन पायेंगे। बन सकते तो बरसात होने पर बादलों के ऊपर ही मंडराते और इन्द्रदेव को खिजाते। जिसे पानी की बरसात धरा पर करना आता है लेकिन बादलों के ऊपर बरसने का गुर ...। इंसान जानता है कि थूकने पर वापिस मुंह पर ही गिरता है, इसलिए इन्द्रदेव भी कभी कोशिश नहीं करता।
गॉड पार्टिकल पहले मिल गया होता तो इन्द्रदेव दिव्यकण से बरसात के पानी को भारविहीन कर लेता,फिर बादलों के ऊपर बरसात होती लेकिन दिखाई सिर्फ हवाई यात्राओं के दौरान ही दिया करती। इससे समस्या हो जाती इन्द्रदेव कभी कण को बरसात के पानी के साथ चिपकाते और जब बादल पानी लेने समुद्रों में जाते तो कण को रिमूव करते, वरना बादल ऊंचे उड़ जाते और कण छोड़कर इन्द्रदेव उन्हें पकड़ने के लिए ऊधम मचाते।
छाता बुजुर्गों को ही है भाता। सेक्सी कन्याएं छतरी इसलिए नहीं लेतीं, कहीं हवा चले और छतरी उड़ जाए। रेनकोट भी नहीं पहनतीं हैं, फिर बरसात में भीगती हैं और पुरुष नैन आनंदित होते हैं। छतरी और छाता जिनके पास नहीं होता है, न होता है रेनकोट और वे मोटरसाईकिल पर सफर करते हैं और फ्लाई ओवरों, बस स्टैंडों के नीचे, जरा सी भी ओट में मजमा लगाकर यूं खड़े हो जाते हैं। मानो बरसात रूपी पूजा के बाद प्रसाद बंटने वाला हो जिसका भोग लगाना सबके लिए अनिवार्य हो।
एक अस्थाई छत जिसके उपयोग से कई बार दुर्गत बनती है। तेज हवाओं में छतरी हाथों से छूटकर उड़ने को मचलती हैं। खींचतान में छतरी उलट जाती हैं, छाता पलट जाता है, डंडी को छोड़ने पर ही चैन आता है। जो मजनूं मोटरसाईकिलों पर छतरियां लेकर चलते हैं, उनका प्यार कच्चा होता है, नोट कर लीजिए जितने भी सच्चे और पक्के प्यार होते हैं, वे सब बरसात में भीगकर ही परवान चढ़ते हैं। आपका प्यार इस बरसात में परवान चढ़ा कि नहीं ?
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