महंगाई की तरफदारी का मंत्र : दैनिक हिंदी मिलाप 31 अगस्‍त 2012 अंक में 'बैठे-ठाले' स्‍तंभ में प्रकाशित



महंगाई की तरफदारी करना एक मंत्री के लिए इस कदर फायदे की डील रही कि उसकी टीआरपी में खूबसूरत इजाफा हो गया है। जबकि वे अपना नंगपना देखकर खुद ही अचंभे में हैं। क्‍या वे इतने नंगे हो सकते हैं कि उन्‍हें देखकर उनका नंगपना ही शर्मा जाए, लेकिन वे यह सोचकर निश्चिंत हैं कि आजकल नंगेपन का ही बाजार है। जिसे देखो आज इसी के प्रभाव के चलते दूसरे के कम, अपने कपड़े उतारने के लिए लालायित है। कमाई चाहे नोटों की हो अथवा ख्‍याति की, कमाई आखिर कमाई ही होती है। अगर आपको कम पब्लिक जानती है, आपको वोट भी कम ही मिलेंगे। इसलिए पब्लिक को जनवाने यानी पहचान बनाने के लिए कर्म करना और अंटशंट बकने से भी परहेज नहीं किया जाता है। वे सब कुछ सहन कर सकते हैं किंतु वोटों में गिरावट के सूचकांक को ख्‍वाबों में भी नहीं गिरने देना चाहते हैं।
‘मैंने महंगाई की शान में दो मीठे कसीदे क्‍या पढ़ दिए, सब करेले और नीम के रस की कड़वाहट लेकर मुझे हटाने में जुट गए हैं। मेरे सच्‍चे वचनों को बड़बोलापन की संज्ञा दी जा रही है।‘ किस्‍सा कोताह यह है कि उन्‍होंने महंगाई की नंगाई की तारीफ की है इसलिए मीडिया समेत सभी उनके कपड़े फाड़ने पर उतारू हैं। संपादक, लेखक और कार्टूनकार अपनी-अपनी कलम और कूंची लेकर उनका मुंह काला करने और साख कलम करने के लिए मुस्‍तैद हो गए हैं। जब कोई वस्‍तु महंगी बिकती है तो उससे किसी न किसी को फायदा होता ही है और उन्‍होंने सिर्फ जिन्‍हें नुकसान हो रहा था, उनको फायदा होना बतला दिया। फिर क्‍या था आसमान फट पड़ा। वे प्रसन्‍न हैं कि आखिर फायदा तो हो रहा है, अब फायदा हो रहा है परंतु भला नहीं हो रहा है और इसका जिक्र भर करने से उन्‍हें बदले में उपहारस्‍वरूप मीडिया की सुर्खियां मिल सकती हैं, फिर वे क्‍यों न बहकें। वैसे वे इसे बहकना नहीं, महंगाई का हक मानते  हैं और चाहते हैं कि महंगाई के हक को छीनने की कोई अनधिकार चेष्‍टा न करे।
इससे पहले उनके एक अन्‍य सहयोगी ने कड़ी मेहनत करने वालों के लिए थोड़ी-बहुत चोरी की वकालत क्‍या कर दी, मानो सारे जहान ने ही भाई के विरोध में मोर्चा खोल लिया। इससे जाहिर है कि किसी को भी दूसरे की खुशी रास नहीं आती है। जबकि इससे चोरी करने वालों का हौसला बुलंद हुआ होगा और उन्‍होंने और अधिक मेहनत करने की ठान ली होगी। सो उन्‍होंने यह कह दिया कि जो किसान सब्जियों, दालों इत्‍यादि की उपज के लिए जिम्‍मेदार है, वही उसका लाभ लेते हैं इसलिए महंगाई का तेजी से बढ़ना किसानहित में है, मैं इसकी सफलता की कामना कर रहा हूं। जबकि वे यह अच्‍छी तरह जानते हैं कि इससे किसान को कम, दलालों को अधिक लाभ हो रहा है।
अब उनके बयान पर किसान उनका कुछ भी बिगाड़ पाने से रहे परंतु दलालों के खिलाफ बोलते तो दलाल उनका मुंह काला और गाल लाल करके भी नहीं छोड़ते। मान लो, किसान सब्जियों और दालों का उत्‍पादन ही नहीं करे, फिर दलालों को लाभ कैसे मिलेगा, इसलिए खाद्य वस्‍तुओं की महंगाई से जो लाभ हो रहा है, वह किसान के खाते में ही माना जाएगा। चाहे लौकिक रूप से वह दलाल की जेब में जा रहा है किंतु अगर दलाल किसान की सब्जियों, दालों को बेचने का धंधा नहीं करे, तब भी किसान आत्‍महत्‍या करेगा। इसलिए दलाल किसान का भगवान है जो उसे जीवनदान दे रहा है और बदले में खूब सारा लाभ ले रहा है। फिर जान है तो जहान है और जहान है तो दलाल है।
इस मजबूत आधार पर दिए गए उनके वक्‍तव्‍य पर न जाने क्‍यों बवाल मच रहा है। वे मंत्री हैं और मंत्री को प्रत्‍येक तरह के मंत्र फूंकने का अधिकार है। उनके इस अधिकार पर किसी को ऊंगली अथवा अंगूठा उठाने का तनिक भी अधिकार नहीं है। इस सत्‍य से सबको परिचित होना ही चाहिए। कुछ अंजान लोग जिनमें उनके खास अपने साथी भी हैं, इसे अंटशंट बयानों की संज्ञा दे रहे हैं। जबकि मैं भी कह सकता हूं कि उनकी हरकतें ऊटपटांग हैं किंतु मैं बिना लाभ वाले मुद्दों पर प्रतिक्रिया नहीं दिया करता। उन्‍हें इससे सिर्फ यही लाभ होगा कि मेरी साख गिराकर वे अपनी साख उठाने के चक्‍कर में चक्रायमान हो उठे हैं। वे नहीं जानते कि इस फेर में उनके राख होने का जोखिम अधिक है इसलिए मैं उन्‍हें आगाह कर रहा हूं। वे नहीं जानते कि वे क्‍या कर रहे हैं। उन्‍हें बुद्धि मत देना ईश्‍वर, वरना वे मेरे बाल नोचने जैसा बवाल भी कर सकते हैं।
आप खुद तो कुछ कह नहीं पा रहे हैं और जब मैंने कह दिया है तो हल्‍ला मचा कर घिनौनी हरकतें बतला रहे हैं। भारतीय संस्‍कृति में सदैव दुश्‍मन को भी उचित सम्‍मान दिए जाने की एक लंबी परंपरा है। आप महंगाई को पब्लिक का दुश्‍मन मानते हैं तब भी उसका हक बनता है कि आप उसके सम्‍मान में कोई कमी न आने दें और अगर आप वस्‍तुओं के रेट इंक्रीज होने को महंगाई का दुर्गुण मानते हैं, तब मेरी तरह उसके दुर्गुण को गुण मानकर उसकी प्रशंसा में तनिक भी कोताही न बरतें। इससे आज नहीं तो कल जब मध्‍यस्‍थों को बीच में से हटा दिया जाएगा और मल्‍टीनेशनल कंपनियां किसानों से डायरेक्‍ट डील करेंगी तब किसानों को जरूर अधिक पैसा मिलेगा। उम्‍मीद पर दुनिया कायम है और आप उम्‍मीदों को पंख लगाना तो दूर रहा, उन्‍हें नोचने जैसा निर्दयी कार्य कर रहे हैं। मुझे तो आपकी मंशा पर ही शक हो रहा है।
आप जानते ही हैं कि सबको काला धन बहुत पसंद है और इसी ध्‍येय को फलीभूत करने के  लिए जवान और बूढ़े सभी सत्‍ता में बार-बार लगातार घूम-घूम कर आते रहते हैं बल्कि वहीं टहलते रहते हैं, कहना अधिक समीचीन होगा। यह पावन उद्देश्‍य तभी पूरा हो सकता है, अगर महंगाई तेज गति से बढ़ती और विकास के सोपानों पर सबसे लड़-झगड़-उलझ कर भी चढ़ती रहे।
जहां तक शर्माने का सवाल है, पहले शर्म नाक को आती है और इस शर्माने से अब कान भी नहीं बच पा रहे हैं, कान भी अब शर्मसार होने लगे हैं। यह सब काले धन का प्रताप है। इसके ताप में झुलसने से कोई साधु अथवा संत नहीं बच सका है, फिर हमारी क्‍या बिसात है कि उसे हम अपने देश के बैंकों में रखकर भीषण आग का जोखिम मोल लें और इतनी जरा सी बात काले धन को देश में लाने के लिए चिल्‍लाने वाले नहीं समझ पा रहे हैं। उनकी अल्‍प बुद्धि पर मुझे अधिक तरस आ रहा है।
इस सारी कवायद से मुझे ऐसा लग रहा है कि इसमें उनका व्‍यंग्‍यकार बनने का स्‍वार्थ है और वे इस प्रकार के अंटशंट बयान देकर खुद को महान व्‍यंग्‍यकार साबित करने की होड़ में व्‍यंग्‍य लेखकों से पंगा ले रहे हैं। संभावना उनके बहकने की भी है किंतु यह बहकना कैसा है कि महंगाई के हक में बहक रहे हैं जबकि वह उनकी गर्ल फ्रेंड भी नहीं है। वैसे इसमें उनकी गलती नहीं है, गलत सारी पब्लिक की है जो भैंस के समान विराट दिमाग वालों को चुनकर देश रूपी वाहन को चलाने के लिए भेज देती है और लाईसेंस भी चैक नहीं करती। जिसका खामियाजा पब्लिक को भुगतना पड़ रहा है क्‍योंकि वे नासमझी की हालत में सरकार चलाकर, इस प्रकार की दुर्घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। इसकी असली कसूरवार पब्लिक ही हुई, जो सब जानती है, जो उनको वोट देकर चुनती है, जो बाद में सिर अपना ही धुनती है। कहीं आप यह सब पढ़कर अपना सिर धुनने में निमग्‍न तो नहीं हो गए हैं ?

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