इस लिंक पर क्लिक करके मुझे यूं ही बिना चश्मे के पढ़ लीजिए, किंतु टिप्पणी करने के लिए चश्मा पहनना पड़ेगा।
सरकार गरीबों को फ्री में मोबाइल बांटकर उनकी इज्जत के सिग्नल डाउन करना चाह रही है अथवा उनसे ‘गरीबी’ का रुतबा छीनकर, देश को विश्व के समक्ष विकसित देशों के समकक्ष दिखलाने के जुगाड़ में जुट गई है। गेहूं, चावल, किरोसीन और लोन बांटने से तो गरीबों की गरीबी दूर नहीं हो पाई है। इसलिए इस बार मोबाइल बांटने की जुगत भिड़ाई है। अब सवाल यह है कि क्या सरकार स्मार्ट फोन बांटेगी या आर्डीनरी मोबाइल, जिनसे बात करने में भी गरीबों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। इसे मुफ्त में आफत गले पड़ना कहा जाएगा। अगरचे स्मार्ट फोन होगा तो उन्हें फेसबुक की लत पड़ जाएगी और वे अपनी दिहाड़ी से भी जाएंगे और जल्दी ही अपनी जान गंवाएंगे। फेसबुक कोई ‘फेस’ देखकर रोटी नहीं दे रहा है। आप फेसबुक पर कितना ही श्रम कर लीजिए। चौबीसों घंटे जुटे रहिए, आपको कोई एक गिलास पानी के लिए भी पूछ ले तो कहिएगा। फेसबुक की उपयोगिता समय का खून करने में है, इसका उपयोग करने से बीमारी से बीमार के खून में भी इजाफा हो सकता हैं किंतु अगर आप यह सोच रहे हैं कि कोई आपको दो सूखी रोटी के लिए भी पूछ लेगा, तब आप मुगालते में जी रहे हैं। जबकि फेसबुक पर सभी प्रकार के व्यंजनों के मनमोहक चित्रों की भरमार तो मिलेगी लेकिन उन्हें देखने से भूख नहीं मिटा करती है।
लगता है सरकार यह सोच रही है कि मैसेज पढ़कर और काल सुनकर भूख और प्यास का इंतकाल हो जाएगा और गरीब जान देने से बच जाएगा। अभी यह भी नहीं मालूम कि कौन से बजट से सरकार इनका इंतजाम करेगी। कितने टैक्स बढ़ाएगी, कितनी वस्तुओं के सेवाकर में बढ़ोतरी करेगी या चालान अथवा टोल टैक्स की राशि एकदम से बढ़ा देगी। सरकार बिजली नहीं दे रही है, सिर्फ गरीबों में मोबाइल फोन बांट रही है जबकि सब जानते हैं कि बिना बिजली के इन फोनों की कोई उपयोगिता नहीं है क्योंकि निष्प्राण फोन पर आने से मिस काल भी कतराती है। यह भी हो सकता है किसी घोटाले और घपलेबाज इन फोनों को स्पांसर कर रहे हों ताकि सरकार उनका खास ख्याल रख सके और यह भी संभव है कि फोनों को बांटने में खरीदने से लेकर ही घपले तथा घोटाले शुरू हो जाएं। संभावनाएं खूब सारी हैं लेकिन यह तो पक्का है गरीब की गरीबी जब गेहूं, चावल और लोन पाकर नहीं मिट सकी है तो मोबाइल फोन पाकर मिट सकेगी, इस बात की तनिक भी संभावना नहीं है।
फिर सरकार और करे भी क्या जब वोटों को हथियाने के लिए इस तरह के हथकंडे ही काम में लाए जाते हैं फिर समय के हिसाब से तो बदलना ही होगा। अब कोई भी आसानी से चावल, गेहूं, किरोसीन अथवा राशनकार्ड लेकर के अपने वोट हड़पने नहीं देता है। वोटर भी जान गया है कि आज का युग तकनीकी का है और मोबाइल सारी तकनीक का बाप। जी हां, फादर ही कहा जाएगा मोबाइल को। आजकल यह सभी गुणों से युक्त है। इसके जितनी खूबियां अन्य किसी उपकरण में नहीं पाई जाती हैं। पीसी लोगे तो फोन नहीं कर पाओगे, प्रिन्टर लोगे तो स्कैन नहीं कर पाओगे, स्कैनर लोगे तो फोटो नहीं खींच पाओगे – यह बतलाने के मायने हैं कि सब एक दूसरे पर अवलंबित हैं। जबकि एक स्मार्ट फोन इन और अन्य सभी खूबियों में अपने लघुतम स्वरूप में समेटे हुए सबको लुभा रहा है।
जिसने स्मार्ट फोन ले लिया, समझ लीजिए उसे बिजली के अतिरिक्त अन्य किसी बाहरी उपकरण की जरूरत नहीं है। बिजली रूपी आत्मा मोबाइल रूपी परमात्मा से मिलकर प्रत्येक इंसान का बेड़ा पार कर रही है। ऐसे में इंसान अगर मोबाइल पाकर खुद को खुदा समझने लग गया है तो इसमें तनिक भी अतिश्योक्ति इसलिए नहीं है क्योंकि वह सीसीटीवी अपने घर अथवा आफिस में लगवाकर दुनिया की किसी भी जगह से सब पर नजर रख सकता है और यह काम इंसान या तो खुदा की मदद से कर सकता है अथवा ईश्वर के साथ मिलकर अपनी हसरतों को खूबसूरत अंज़ाम तक पहुंचा सकता है।
सरकार चाहे गरीबों में मोबाइल फोन बांटे या पीसी, लैपटाप अथवा कैमरे लेकिन इतना तो तय है कि महंगाई की सौत गरीबी का खात्मा किसी भी सरकारी दान से नहीं किया जा सकता। हां, ये जरूर संभव है कि इस नेक कार्य से जुड़े अनेक अमीर लोग और अमीर बन जाएं और नेता चुनाव लड़कर मंत्री से पीएम और राष्ट्रपति बनने की कवायद में जुट जाएं। यह अमीर होने का नुकसान ही है कि उन्हें फ्री के मोबाइल मिलने के लुत्फ से वंचित रहना होगा। वैसे भी अमीर होने के तो नुकसान ही नुकसान है और गरीब होने पर खूब सरकारी माल मिला करता है, क्या हुआ जो बदले में पांच साल में सिर्फ एक बार अपना वोट देना पड़ता है ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
ऐसी कोई मंशा नहीं है कि आपकी क्रियाए-प्रतिक्रियाएं न मिलें परंतु न मालूम कैसे शब्द पुष्टिकरण word verification सक्रिय रह गया। दोष मेरा है लेकिन अब शब्द पुष्टिकरण को निष्क्रिय कर दिया है। टिप्पणी में सच और बेबाक कहने के लिए सबका सदैव स्वागत है।