रावण से फेसबुक पर मुन्‍नाभाई की लाइव चैट : डेली हिंदी मिलाप 11 नवम्‍बर 2012 के धनतेरस परिशिष्‍ट 2012 में पुरस्‍कृत एवं प्रकाशित



बीती रात रावण चैट पर था। तभी खुलासा हुआ कि रावण ने भी फेसबुक पर अपना खाता खोल लिया है। नीचे ज्‍यों की त्‍यों पूरी बातचीत पेश है। प्रश्‍न सभी मेरे हैं और उत्‍तरों पर रावण का कॉपीराइट है। रावण ने मुझे ऑनलाईन पाकर मेरे चैटबॉक्‍स में लिखा ‘हाय’। प्रोफाइल पर रावण लिखा देकर मैं चौंक गया  :

मैं : कौन रावण  कैसे हो सकता है ?  
रावण : क्‍यों नहीं हो सकता, जब तक फेसबुक पर खाता खोलने के लिए किसी पहचान पत्र और अपने चित्र की जरूरत नहीं है। तब तक मैं ही नहीं, तुम सभी से फेसबुक पर मिल सकते हो मुन्‍ना। पिछले दिनों बिग बी ने खाता खोला है जबकि इससे पहले  कंस, दुर्योधन, कृष्‍ण, राधा, सीता, राम, ताड़का, जटायु, विभीषण इत्‍यादि सभी इस सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं।
मैं : मुन्‍ना नहीं, मुन्‍नाभाई कहो रावण    
रावण : जो जैसा कहता है वह वैसा ही सुनता है, मुझे भाई कहते तुम्‍हें शर्म आई इसलिए मैं तुम्‍हें भाई कैसे कह सकता हूं। पहल तुमने ही की है। मैं अवाक् रह गया, सचमुच में रावण से ही ऐसे प्रत्‍युत्‍तर की उम्‍मीद की जा सकती थी। विकट का ज्ञानवान है रावण। मुझे स्‍वीकारना ही पड़ा। क्‍या आपके दसों सिरों में दिमाग है ? 
रावण : इसमें भी शक ? जब एक सिर में दिमाग रह सकता है तो दस सिरों में क्‍यों नहीं। आजकल बहुमंजिली इमारतों का जमाना है।
रावण ने यह कहकर मुझे एक और जोरदार पटकनी दे दी।
मैं :  पर तुम्‍हें तो राम ने तीर से मार दिया था न ? 
रावण : जब आजकल हेलीकॉप्‍टर के गिरने से जानें बच सकती हैं तो एक तीर की क्‍या औकात, रावण की पूरी जान ले सके। 
मैं : पूरी का क्‍या मतलब है ? 
रावण : पूरी से आशय है कि मैं थोड़ा भी नहीं मरा, पूरा जिंदा हूं।  
मैं : मतलब घायल भी नहीं हुए ?  
रावण : मैं घायल क्‍या होता बल्कि इंसान मेरा कायल हो गया है जिसे आजकल फैन कहते हैं और सब मिलकर मुझे ऑक्‍सीजन की फूंकें दे रहे हैं।  तुम जितनी बार मुझे फूंकते हो, मेरे निराकार शरीर को उससे प्रचार रूपी ऑक्‍सीजन मिलती है।  जो मुझे मारना चाहता है, वही मुझे जीवन दे रहा है। इंसान जिस दिन मुझे फूंकना बंद कर देगा, उसी दिन मैं विस्‍मृति के गर्त में दफन हो जाऊंगा। लेकिन मुन्‍नाभाई तुम किसी से मेरे इस रहस्‍य का पर्दाफाश मत करना। मुन्‍नाभाई सं‍बोधित करते हुए रावण की एक और कलाबाजी से मैं रूबरू हो रहा था।
(उसका लिखना जारी था) मेरे होने से बाजार है। बाजार में व्‍यापार मेरे होने के आभास से है। सिर्फ फेसबुक ही एक आभासी दुनिया नहीं है। करोड़ों अरबों का काम मेरे दहन के नाम पर हो रहा है। मैं सशरीर न होते हुए भी, किसी की रोजी हूंकिसी के लिए रोटी हूं। किसी के लिए बिजनेस हूं और काले धन का द्वार हूं। देख लो, कोई मेरे पुतले बनाकर कमा रहा है। कोई तीर-कमान बनाकर बेच रहा है। मुखौटे बना रहा है कोई तो कोई फूंकने का तमाशा दिखाकर धन उगाह रहा है। कौन कहता है कि मैं जल रहा हूं। मैं तो आप सबके मन में पल रहा हूं।  आजकल के बाजारवाद में सब जगह विभीषण अलग-अलग रूपों में मौजूद है। मुझे जिंदा रखने में भी बाजार का स्‍वार्थ है ? 
मैं : बाजार का स्‍वार्थ मैं समझा नहीं।  रावण ही हो न तुम ? बिग बॉस तो नहीं हो !
(रावण की फेक आई डी बनाकर मुझसे चैट कर रहा हो, मुझे शक हुआ जिसे रावण ने भांप लिया।)  
रावण : बिग बॉस को अपने शो यानी कलर्स रूपी  लंका से कहां फुरसत है, उसने भी सही समय देखकर अपना लंका प्रकरण मतलब बिग बॉस शो का प्रसारण शुरू किया है। 
(रावण की बुद्धि पर फिर मुझे रश्‍क हो आया था।) आजकल बाजारवाद है सब चाहते हैं कि बाजार को मेरे संग साथ से नित नए आयाम मिलेंवे नए सोपान गढ़ें।
मैं : लेकिन तुम तो बुराईयों के मौलिक रूप हो।    
रावण : मुन्‍ना, बाजारीकरण में बुराईयां व्‍यापार को बड़ा बाजार और बेशुमार धन देती हैं, नहीं जानते या न जानने का ढोंग कर रहे हो। (रावण ने ताना मारा)।
मैं :  लेकिन तुमने तो सीता को बुरी नजर से देखा और किडनैप किया।  
रावण : मुन्‍ना सुनो, मैंने रेप तो नहीं किया ? पर आज यह सब हो रहा है। लंका काल में बुराईयों का मानकीकरण था, आज खुला अमानवीयकरण है। उसी अमानवीयता से चारों ओर संवेदनहीनता की पराकाष्‍ठा है।  चैनल खुद को सुर्खियों में लाने और उसकी टीआरपी को सबसे ऊपर मानकर मनमाना आचरण कर रहे हैं।  अपने चरणों से प्रत्‍येक अच्‍छाई को दबा दबाकर कुचल रहे हैं और इसमें राम की पूरी सहमति और मिलीभगत है।  
बाजार में जमने के लिए ऐसे अनेक यत्‍न किए जाते हैं। इससे भारत रत्‍न और विश्‍व रत्‍न पाने की योग्‍यता हासिल करते हुए नोबल हथिया लिए जाते हैं। बाजार सम्‍मान और पुरस्‍कारों के पीछे  दौड़ रहा हैजिसकी चर्चा हैजो सुर्खियों में है, उसे सच्‍चाई से कोई सरोकार नहीं रह गया है। प्रिंट मीडिया ने भी उस ओर से अपनी आंखें फेर ली है, धनवेदना से समस्‍त जग त्रस्‍त है। धनोबल सर्वोपरि हो गया है। रही सही आस अब न्‍यू मीडिया से जगी है किंतु उस पर भी सरकार की भृकुटि तनी है, कुल्‍हाड़ी चलने ही वाली है। बेईमानी की भरपूर डिमांड है, ईमानदारी रिमांड पर है। पानी की चर्चा चल रही है। पानी और लहू बेकार में बह रहा है। न पानी और न लहू में अब उबाल आता है। शब्‍दों के जाल से बवाल मचाया जाता है। बेतुकी बयानबाजी की जाती है।
(मुझे अहसास हो चला था कि जिससे मेरी चैट जारी है, वह रावण ही है।  पुष्टि हो चुकी है कि रावण झूठ नहीं बोलता। वह सदा सच के खेल ही खेलता है) फिल्‍मों में मेरी प्रवृत्तियों का इस्‍तेमाल बतौर खलनायक होता है। दीवाली भी मुझसे है। दिवाला भी मुझसे है। मैं दशानन रावण त्‍योहारों के केन्‍द्र में हूं ।

मैं : लेकिन तुम तो हर साल चौराहे पर सबके सामने जला दिए जाते हो  ?
रावण : यह इंसान का स्‍वांग है, असली रावण कभी नहीं जला हैन जलेगा। पर इससे सबको रोजगार अवश्‍य मिल रहा है। इंसान को जो बहाना चाहिएवह बहाना हूं मैं। बुराईयों का अफसाना बताया जाता है मुझे। सीता खुश है कि मेरी वजह से चर्चा में है और चर्चा में बनी रहती है। लोकप्रियता का ही बाजार है। सब इसी के इर्द गिर्द चक्‍कर काट रहे हैं। जो लगता तो दुख हैदरअसल वह पब्लिसिटी का सुख है। वरना तो सबने मुझे भुला दिया होता।

राम का नामगांधी का नाम इसलिए याद रहा है क्‍योंकि रावण और उसकी कुत्सित वृतियां साथ जुड़ी थीं। दुख न हो तो सुख को पूछने वाला कोई नहीं मिेलेगा। रावण नहीं होगा तो कौन रामसब पर लग जाएगा विराम। समझ गया था मैं, यह अंतहीन अनवरत यात्रा हैसच्‍चाई है जिसने सबको लुभाया है। बुराईयों का मिटाना भी उत्‍सव है। उत्‍सव इंसान की जिंदगी का सच है।  सच्‍चाई को पाना भी पर्व है। बुराई को भुलाना भी गर्व है। दोनों न होते तो दशहरा न होतादशहरा न होता तो दीवाली न होती। मेरे मरने पर दशहरा और राम के जीतने पर दिवाली है। दरअसल जनता की जेब खाली करने की यह रस्‍म बना ली है।
{रावण ने अचानक लिखा कि उसे इलाके में हो रही रामलीला का उद्घाटन करने जाना है और हरी बत्ती एकदमसे गुल हो गई....मैं सोचता ही रह गया.....}

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