‘आपका पैसा आपके हाथ’ सत्ता पक्ष ने लुभावना जाल फेंका है। जाल लुभाए न तो पब्लिक झांसे में नहीं आती और सदा से फंसता शिकार ‘आम आदमी’ इस बार फिर से हाथ के फेर में उलझने को अभिशप्त हो गया है। इस बार शातिर शिकारी ने ऐसा पांसा फेंका है जिसके असर से दूर की कौड़ी भी समीप की हो गई है। अपने पैसे को वह शिकार का बतला रहा है, शिकार भी उसे अपना मान बैठा है। वह सोचता है कि मानने में क्या हर्ज है, जब खर्च नहीं हो रहा है, उल्टे खर्चा पानी ऑन एकाउंट मिल रहा है। जिससे सुखद की सुखदाहट गुदगुदी में बदल गई है। गुदगुदी सर्वर होती है, गुदगुदाने से दोनों को असीम सुख की प्राप्ति होती है। सुख न हो, उसकी गुदगुदी ही हो, यथार्थ न हो, स्वप्न ही हो – आखिर उससे हौसला मिलता है। कितने तो सिर्फ हौसलों के बल पर किले फतह कर लेते हैं।
अब कुछ और मिल रहा होता तो एकबारगी विचार भी किया जाता पर जब साक्षात धन मिल रहा है या मिलने की संभावना नजर आए तो भ्रमित होना बनता है। भ्रम का जाल ‘फेसबुक’ के नशे से कम नहीं होता। इसलिए आम आदमी इसमें पूरा उलझता है। नशा ‘राम’ नाम का भी टल्ली कर देता है फिर धन का नशा तो शान में रोजाना बढ़ोतरी करता है। नशा या शान किसी में भी हो इजाफा, दोनों चीजें भरपूर मजा देती हैं। मजा ‘जाम’ बनकर टकराता है। इसलिए पैसा सदा सबको सुहाता है। पहले शराब की बोतलें छिपकर बांटी जाती रही हैं। पैसा भी छिपाकर ही बांटा गया है किंतु इस बार तो क्रांति हो गई है। करेंसी नोट ढोल बजाकर, पीटकर बांटे जाएंगे, मानो भ्रष्टाचार को कानूनी मान्यता मिल गई है और वे सीधे ‘आम आदमी’ के बैंक खातों को रोशन करेंगे। बस कहा उसे सब्सिडी जाएगा और सबको सिड़ी बनाया जाएगा। दलाली का खेल खत्म, जिससे दलाल चिंता के मारे लाल हुए जा रहे हैं कि ऐसा क्या किया जाए ताकि दलाली बंद न हो, दलाली का जाना दीवाली का लुप्त होना है। तभी एकाएक उनके चेहरे खिल उठते हैं। दलाली चालू हो गई है।
वोट हथियाना है तब भी किसी को नाराज करना नहीं बनता। वरना गणित को कैसे उखाड़ा जाए, यह चिंता करने से बेहतर है कि न बिगड़ने दिया जाए, न गड़ने दिया जाए। शर्मो हया का कहीं नामोनिशां नहीं है। वैसे भी कर्म फोड़ने से, अच्छा बेशर्म होना इंडिया है। नोट बांटने से वोट बढि़या संख्या में मिलेंगे, सौदा सुच्चा और खरा है क्योंकि उसी की ताकत से भविष्य में नोट जुगाड़े जाएंगे। सुन रहे हैं कि खातों को पैसे खिलाने का खेल जारी रहेगा, अच्छा इंवेस्टमेंट है। खाते तरावट की खबर सुन प्रसन्न हैं। लोकतंत्र के सभी खंबे नोटों की चिनाई करके मजबूत कर दिए गए हैं। इस बार यह दांव सफल हो जाए तो अगली बार सोशल मीडिया (न्यू मीडिया) का तोड़ भी निकाला जाएगा। एक भी खंबा कमजोर नहीं रहने दिया जाएगा। इस बार गरीबों को और अगली बार तथाकथित गरीबों को, सरकार की यह चाल, कहो कैसी रही ?
बेहतर लेखन !!
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