सीएम के ह्यूमर सेंस : दैनिक ट्रिब्‍यून 'खरी खरी' स्‍तंभ 23 दिसम्‍बर 2012 में प्रकाशित



कहा गया है कि अपने उपर व्‍यंग्‍य करना और सहना सबसे कठिन कार्य है और आजकल सीएम के हालिया बयान से तो यही साबित होता है कि वे इसमें सिद्धता हो चुकी हैं। चार रुपये में एक व्‍यक्ति के लिए संतुलित तो क्‍या, असंतुलित भोजन की कल्‍पना करना भी कठिन है, हासिल करने की तो बात ही छोड़ दीजिए। जबकि सीएम ने हकीकत में ब्‍यान जारी कर दिया है। आपको इससे आपत्ति हो तो हो, वे बाद में कह देंगी कि दिल्‍ली क्‍या देश के लोगों में तनिक सी भी कॉमेडी सेंस नहीं है जबकि मन भीतर से खुश न हो तो 600 रुपये क्‍या 6000 रुपये का एकवक्‍ती भोजन भी कर ले, तब भी सब बेकार है। खुश रहना वह कला है कि आपके विरोधियों का गला इस बाण से खुद-ब-खुद कट जाता है। आपकी खुशी देखकर अगर सामने वाला नाखुश नहीं हुआ, उसके आचार-व्‍यवहार में इसकी झलक नहीं मिली, उसके फेस पर दुख ने पक्‍का कब्‍जा नहीं जमाया, तो सच मानिए ऐसी खुशी व्‍यर्थ है, सचमुच इसका कोई अर्थ नहीं है। खुद की खुशी तब ही पूरी माननी चाहिए जब सामने वाला उसके कारण खुदकुशी करने पर उतारू हो जाए। और जब वह खुदकुशी कर ले तब तो आपकी खुशी का पारावार ही नहीं रहना चाहिए।
खुशी के साथ हंसी का खास रिश्‍ता है। जिसमें दांतों की उल्‍लेखनीय साझेदारी होती है, वह शो रूम है हंसी का और भंडार आपके मन में है। अगर मन में हंसी का भंडार न हो तो बाहर के दांत काटने को दौड़ते दिखते हैं। हंसना तो कुत्‍ते भी चाहते हैं किंतु हंसने की कोशिश में भी उनके काटने के पैगाम नजर आते हैं। दांत अगर ऐड़े तिरछे मैले कुचेले हों तो हंसी, हंसी होते हुए भी डरावनी हो जाती है। शुक्र है कि नेताओं की फितरत चाहे भय पैदा करती हो किंतु जाहिरा तौर पर हंसी अभी डरावनी नहीं हुई है। अगर ऐसा हो गया होता तो समझो कयामत ही आ गई होती।
नतीजतन, आपको तुरंत नाचने और खुशी को पूरी शिद्दत से मनाने के लिए सड़कों पर उतर आना चाहिए। यही लक्षण जवानी के भी हैं। जवान लोग भी यही किया करते हैं, इससे इतर जवानी दिखलाने के लिए ऐसा तो है नहीं कि राह चलते किसी का चुंबन ले लिया और कोई ऐसी वैसी कैसी कैसी हरकत कर डाली। अगर हरकत कर डाली फिर जो जिस जवानी का मजा आता है, उसे हलकट जवानी कहा जाता है, जवानी की इस अदा के भी खूब चर्चे हैं आजकल।
सच मानिए तो सीएम या पीएम को ऐसा होना बनता है कि जो शून्‍य की अहमियत को समझने और समझाने की घोर काबलियत से लवरेज हों। वे स्‍वीकार करते हों कि एक दो या तीन शून्‍य खर्च करने से प्‍याली में कोई बड़ा तूफान नहीं आ जाएगा। अब शून्‍य फिगर के बांयी ओर या दांयी ओर हो, नेताओं को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। एक एक वोट को उठाने के लिए वह कितना ही नीचे गिर सकते हैं और उड़ना पड़े तो आसमान में सबको साथ लेकर उड़ सकते हैं, जैसे कि सीएम ने 600 रुपये में महीने भर 5 सदस्‍यों के परिवार के लिए संतुलित भोजन की कल्‍पनातीत उड़ान को अमलीजामा पहनाने की कोशिश की है। आप उनकी तेजतर्रार बुद्धि का लोहा मानना तो दूर, उनकी खिल्‍ली उड़ाने में मशगूल हो गए हैं और उनके प्रयासों को बबूल के कांटे बतलाने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। अगर वे इतनी कंटीली होती, जबकि 75 बरस की उम्र में कोई कितना कंटीला रह जाता है इसे सब जानते हैं, तो क्‍या लगातार 14 बरस से सीएम पद पर अपनी पैठ जमाए रह पातीं।
मेरा यह भी मानना है कि दिल्‍ली के किसी सफल सीएम को ही देश का पीएम बनाया जाना चाहिए। उनकी दी गई दलीलें चाहे थोथी हों किंतु चने की तरह घणी बाजती तो नहीं हैं। और बाजती भी हैं तो उससे पार्टी के वोट बैंक में इजाफा ही होता है। अब भला बतलाइए कि इतनी दूरंदेशी क्‍या कम है कि मात्र 600 रुपये में आप एक के साथ चार फ्री वोट भी हासिल करने में सफल हो जाएं। जबकि इससे पहले शराब की बोतलें बांट कर परिवार का सिर्फ एक वोट ही मिल पाता था। अब परिवारों को यह अहसास होने लगा है कि सरकार सिर्फ शराबियों की ही नहीं, उनके परिवार के बारे में भी सोचती है और यह सोचना क्‍या कम है। आपको कैसा लग रहा है यह फसाना, जरूर बतलाना कि कहो कैसी रही ?

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